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जब भी हम संस्कृति के विषय में बात करते हैं केवल एक ही नाम सर्वोपरि है – ‘भारत की संस्कृति’। किसी भी क्षेत्र की संस्कृति उस एक समुदाय विशेष या निकाय का वर्णन करती है। संस्कृति किसी भी समाज के सदस्यों से संबंधित नैतिक मूल्यों, लोगों, परंपराओं, कानून, कला, और अन्य सभी कौशल के बारे में अवगत कराती है। हमारा भारत ही एक ऐसी जगह है जहाँ विभिन्न संस्कृतियों और अलग अलग धर्मों के लोग निवास करते हैं। यह हमारे भारत को अद्वितीय बनाता है लेकिन कुछ कारणों से आधुनिक किशोरों का रुझान पश्चिमीकरण की ओर बढ़ता जा रहा है। पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव दिनों-दिन इतना गहरा हो रहा है जिसकी वजह से युवा पीढ़ी को भारतीय सभ्यता का महत्त्व सिखाना आवश्यक हो गया है। आइये कुछ तथ्यों की ओर ध्यान दें :-
भारत में विभिन्न अवसरों पर पारंपरिक कपड़ों जैसे घागरा-चोली, साड़ी, धोती-कुर्ता, मुन्डू-ब्लाउज आदि पहनने का रिवाज़ है, लेकिन नई पीढ़ी इस तरह के पारंपरिक वस्त्रो से दूर भागती है। उनको केवल आरामदायक कपडे जैसे शर्ट, शॉर्ट्स पहनना ही पसंद है। पश्चिमी पहनावा अब उनकी जीवन शैली का अंग’ बन चूका है। वे अब यह स्वीकार नहीं करते कि इस तरह के वस्त्र केवल अल्पकालिक आकर्षण का केंद्र-बिंदु हैं। जो सभ्य और नैतिकछवि भारतीय परिधान में है वह अतुलनीय है। जैसे महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मदर टेरेसा आदि अपनी मजबूत जड़ों के कारण हि आज तक भी विदेशों में सम्मानित हो रहे हैं।
महिलाओं में पश्चिमी संस्कृति की ओर रुझान इसलिए बढ़ता जा रहा है क्योंकि उनको लगता है कि पश्चिमी देशो में महिलाओं को पूर्ण स्वतंत्रता दी जाती है। वह अकेले सड़क पर आधी रात को भी सुरक्षित रूप से चल सकती है। वहाँ किसी भी प्रकार के शोषण का उन्हें कोई भय नहीं है। इसके विपरीत भारत में यदि कोई महिला आधी रात को घर से बाहर चली जाए तो उसे अश्लील नज़र से देखा जाता है। भारत में यदि एक लड़की शॉर्ट्स में दिख जाए तो वह सबके आकर्षण का केंद्र बन जाती है। राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो के अनुसार, भारत भर में लगभग 2493 बलात्कार मामले २०१२ में दर्ज किये गए हैं। बलात्कार और यौन शोषण के बढ़ते आँकड़े महिलाओं में अधुनिकीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं क्योंकि आज की महिलाए किसी भी क्षेत्र में पुरुषो से कम नहीं है। वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलकर चलने के लिए सदैव तत्पर है। युवा पीढ़ी को यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां पर ‘नारी तू नारायणी’ की शिक्षा दी हैं और शिव और शक्ति की उपासना अर्धनारीश्वर के रूप में की जाती है।
भारत में घरेलू हिंसा और वैवाहिक बलात्कार के चलते युवा पीढ़ी मुख्य रूप से लिव-इन-रिलेशनशिप में विश्वास करने लगी है। खासकर महिलाओं को बचपन से ही अनेक मानसिक और शारीरिक यातनाओं को सहन करना पड़ता है। लड़का और लड़की के बीच भेदभाव, कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्याएं धुनिक युग में स्वीकार्य नहीं हैं।
आधुनिकीकरण के चलते मास मीडिया, शिक्षा और पाठ्यक्रम, फैशन, व्यापार और उच्च तकनीक तथा तरक्की के विभिन्न अवसरों ने किशोरों के बीच बदलते मापदंडों को हम सब भली-भांति देख सकते हैं। जहाँ भारत में प्राकृतिक सौंदर्य और मासूमियत की सराहना की जाती है वही किशोरों के लिए स्टाइलिश बाल, स्मार्ट कपडे, अंग्रेजी भाषा में निपुणता, आदि को अधिक महत्व दिया जाता है। प्राचीन संस्कृति में कपड़े केवल शरीर को ढकने के लिए महत्वपूर्ण थे, लेकिन समकालीन युग में यह एक महत्वपूर्ण जीवन शैली बन गया है। मातृ भाषा, परंपराओं और नैतिक शिक्षा का अनादर खुले आम हो रहा है। कट्टर प्रतिद्वंद्विता ने भाईचारे की जगह ले ली है।
व्यापक सड़कें, सफाई, अद्भुत गगंचुम्भी इमारतें पश्चिमी देशों में प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों, टूटी सड़कों, बदबू भरे नालों, के इर्द गिर्द रहना किशोरों द्वारा स्वीकार्य नहीं है। यदि हम स्वच्छता, बढ़ती जनसंख्या और महानगरों की बात करें तो उनमें भी भीड़ भरे क्षेत्रों की कोई कमी नहीं हैं। नई पीढ़ी को चाहिए कि मोदीजी के स्वछता अभियान की ओर कदम बढाएं। उसके लिए हम सबको एकजुट होकर कार्य करना होगा तभी हम हमारे देश को पृथ्वी का स्वर्ग बना पाएँगे।
हमारी युवा पीढ़ी ही भारत का भविष्य है। जरूरत है कि वह भारतीय संस्कृति की बुनियाद और नैतिकता का सही अर्थ समझें। भारत में संबंधों में जो स्नेह और अपनापन है, मिटटी की खुशबू है, वह अकथनीय है। यदि परिवार का एक सदस्य कठिन समय का सामना कर रहा है तो बाकी सभी सदस्य हमेशा एक दूसरे की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं, और परिवार की एकजुटता साबित करते हैं। योग और ध्यान जैसी प्राचीन कलाओं की मांग पश्चिमी देशों में दिनोंदिन बढती जा रही हैं। विभिन्न विदेशी भी भारत में गर्मजोशी और स्नेह से आकर्षित होकर हमारे देश में बस रहे हैं। यह भारत ‘अतुल्य भारत’ के रूप में सदैव पहचाना जाएगा, यह अब आगामी पीढ़ी पर निर्भर करता है। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं। पश्चिमी संस्कृति के अनुकूल ढलने में कोई बुराई नहीं है लेकिन हमें अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलना चाहिए। हमें पश्चिमीकरण को सकारात्मक वृद्धि के लिए अपनाना चाहिए लेकिन अपने देश की नैतिकता और भारतीय संस्कृति को भी ताक पर नहीं रखना चाहिए।
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