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बच्चों के मुख से

पहेली जीवन की
पहेली जीवन की
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मैं एक माँ हूँ और मुझे विभिन्न अनुभव है कि बच्चें किस तरह से कभी परिहास करते हैं और कभी हैरान। आप सब भी छोटे बच्चों की बातों से हर पल अपने जीवन में आनन्द का अनुभव करते होंगे। यहाँ मैं आपको ऐसे ही कुछ हंसाने वाले पल बतने जा रही हूँ।

कल रात, मेरी बेटी की दोस्त हमारे घर खेलने के लिए आई थी। वह और मेरे दो छोटे बच्चे आपस में झगड़ रहे थे, “हम किसका खेल पहले खेलें?” 15 मिनट के बाद उन्होंने वैकल्पिक रूप से खेलने का फैसला लिया। बाद में, जब उसके पिता उसे वापस घर ले जाने के लिए आए, तब उन्होंने मुझसे पूछा,”तुम घर पर एक पिल्ला लाय हो क्या?” वह उसे देखने के लिए घर के भीतर झाँकने लगे। मैंने हँसकर कहा,”अरे नहीं भैया, मेरे घर में पिल्ला रखने की अनुमति नहीं है”। वह ख़ूब हँसे और कहा, ” लेकिन मेरी बेटी ने तो मुझे बताया कि तुम एक पिल्ला लाए हो और वह उसे देखने के लिए उत्सुक थी और उसने उसके साथ खेलने की अनुमति देने के लिए मुझसे वादा भी लिया था “हमारे घर आके खेलने की अनुमति लेने की उसकी इस चाल पर हम सब अपनी हँस रोक नहीं सके और सोचने लगे, “बच्चे कैसे अपनी बात मनवाने के लिए माँ बाप को छलते हैं। वह अपने घर वापस जाते हुए इतराते हुए बोली, “मैं हमेशा ऐसी चालें चलती रहती हूँ”।

एक अन्य घटना, मेरा 4 वर्षीय बेटा, जो सर्दी के दिनों में स्कूल जाने के लिए अनिच्छुक था। मैं उसे जगाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वह जाने से इनकार कर रहा था। वह बोला,”मुझे आज स्कूल नहीं जाना ‘ और रोना शुरू कर दिया। मैं उससे झल्लाकर बोली,”क्यों आज क्या खास बात है जो तुम स्कूल नहीं जाओगे?”। तब वह उठा और स्कूल के लिए तैयार हो गया। अगली सुबह दिनचर्या के अनुसार मैंने उसे जगाने का प्रयास किया और उसने जवाब दिया,”आज ऐसा क्या खास है जो मैं आज स्कूल जाऊँ?” मैं उसकी अचानक प्रतिक्रिया पर अवाक रह गई।

यहाँ उन बच्चों का जिक्र कर रही हूँ जो दिन भर अपना मुह चलाते रहते हैं। मेरे बेटे को हर वक़्त फ्रिज खोलकर खड़े होने की आदत है और वह उसमे कुछ ना कुछ खाने के लिए ढूंढता रहता है। एक दिन, मैंने उसकी पसंदीदा खीर उसके लिए तैयार की और उसे एक कटोरा भरके खाने को दे दी। बाकी बची खीर मैंने उसके पापा के लिए फ्रिज में रख दी। उसने अपना पसंदीदा पकवान खा लिया। कुछ समय बाद उसने फिर से फ्रिज खोला और बड़े कटोरे में खीर रखी देखी। उसने मुझसे पूछा, “माँ, मैं यह खा लूँ”। मैंने कहा,’ नहीं! यह अपने पिता के रहने दो, मैं तुम्हें पहले से ही खाने के लिए दे चुकी हूँ। मासूमियत से उसने मुझसे फिर कहा, “माँ, मैं थोड़ी अभी खा लेता हूँ थोड़ी पापा के साथ खा लूँगा”। उसकी इस मासूमियत मैं हँसे बिना नहीं रह सकी और उसे थोड़ी और खीर खाने को दे दी।

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